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Rahuldai
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Posted on 07-22-08 4:43
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झरीमा परी
यो झरीमा परी झै लाग्ने को हो तिमी सुन्दरी बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
भक्तहरुको उपासना हो या प्रक्रितीको सुन्दर सिर्जना तिर्खाएको मरुभूमीको हाल झैं भयो मनको तिर्सना
यो झरीमा परी झै लाग्ने को हो तिमी सुन्दरी बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
प्रभाती उषाको के हुन्थ्यो गाढा ओंठको त्यो लाली मोहनी लगायौ कि तिमीले हेरीरहुं झै लाग्ने खाली
यो झरीमा परी झै लाग्ने को हो तिमी सुन्दरी बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
गाजलु आँखामा नशालु भाखा पग्लिन्छ ढुंगा पनि झुकी लुक्छ काँडा भित्र लजाइ फूल को थुँगा पनि
यो झरीमा परी झै लाग्ने को हो तिमी सुन्दरी बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
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rawbee
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Posted on 07-22-08 4:47
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OMG daami gayo ni ta thuldai..
बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
Last edited: 22-Jul-08 04:47 PM
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*~Spring~*
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Posted on 07-22-08 5:05
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"गाजलु आँखामा नशालु भाखा पग्लिन्छ ढुंगा पनि झुकी लुक्छ काँडा भित्र लजाइ फूल को थुँगा पनि "
Thuldai, kavita nikai ramro cha specially these 2 lines comprises a whole world of meanings if anyone could try to interpret...Ramro lagyo...
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parbatya
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Posted on 07-22-08 5:58
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ओहो दाई किच्कन्ने कै फेला पर्नु भयो कि क्या हो? अत्ती सुन्दर बर्णन गर्नु भयो नि
दामी छ दाई ल !!
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तिका:
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Posted on 07-22-08 6:15
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राहुल भाइ, हमार देश भारतके प्रदेश होने लगा है, अब तो ऐसन कविता लिखने चाहिए --
...........
ये झरीमे परी लगति, कौन हो तु सुन्दरी बूंद बूंद होकर गिरुं क्या?, स्पर्शका लालच रहि
भक्तोँका उपासना है ये प्रक्रितीका सुन्दर सिर्जना प्यास लगती मरुभूमीके हाल हुआ मनका ये तिर्सना
ये झरीमे परी लगति, कौन हो तु सुन्दरी बूंद बूंद होकर गिरुं क्या?, स्पर्शका लालच रहि
प्रभाती उषा भि नहि होति ऐसन होँठके लाल लाली मोहनी ऐसन लगाया तुने देखते हि रहा हुं मै खाली
ये झरीमे परी लगति, कौन हो तु सुन्दरी बूंद बूंद होकर गिरुं क्या?, स्पर्शका लालच रहि
काजल आँख और नशालु नजरसे पिगलता है सामनेका पत्थर भि झुकी लुक्छ काँडा भित्र लजाइ फूल को थुँगा पनि (बाफ रे, ये तो बहुत मुश्किल हुआ रे कोइ बाहुन होता तो आसानी से हिन्दी मे केहेदेता । हँ)
खेँ खेँ खेँ खेँ, जय राम जि कि ।
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Narayangarh suburb
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Posted on 07-22-08 7:04
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"झुकी लुक्छ काँडा भित्र लजाइ फूल को थुँगा पनि"
लजाएर हुन या त्रासले काडा त नीकै तीखारीएका छन सन्तुस्टीले हो या पीडाले आँखा ती लोलाएका छन
राहुल दाई नमस्ते गरे है। यहाँ पनि नीकै झरी परी रहेको छ। हुन त बर्सा नरोकीएको धेरै भयो तर फरक एती छ आज आकाश को पालो छ।
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serial
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Posted on 07-22-08 9:11
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बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
वाह ठुल्दै वाह गज्जब गयो
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Rahuldai
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Posted on 07-23-08 9:05
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रबी जी , बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी यो पंक्तीमा त मलाई पनि अत्मसन्तुष्टी भाथ्यो। अली चर्को भयो कि भन्ने डर पनि।
पिया जी, अर्थ जे लगाए नि सुन्दरता बयाँन न हो, सुन्दरै रहन्छ। आँखा चिम्लेर हेर्दा अझ सुन्दर देखिन्छ।
पर्बते जी,
झरी मा पारी देखेको ठीक साँचो हो, किचकन्ने त होइन होला हो।
तिका: जी,
संभवत राजनैतीक मजाक गर्ने धागो यो होइन जस्तो लाग्यो। तपाईं को अनुवाद भने प्रसंसानीय नै छ।
नारायण जी, वाह ! वाह ! तपाईं को भाव लाई सलाम गर्छु। झरी त कहिले रोकिएथ्यो र फरक यती हो कि कहिले आँखाबाट झर्छ कहिले मुटु बाट।
लहरे जी,
मलाई नि वाह! भन्न मन लायो।
बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी
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Birkhe_Maila
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Posted on 07-23-08 9:10
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गजब को गीत गयो ठूल्दाई!! वाह!!
कताबाट रोमान्टिक कुरा फुरेछ ठूल्दाई?
बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी!!
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ritthe
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Posted on 07-23-08 9:19
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ओहो दाई किच्कन्ने कै फेला पर्नु भयो कि क्या हो? अत्ती सुन्दर बर्णन गर्नु भयो नि
दामी छ दाई ल !!
"हुन त बर्सा नरोकीएको धेरै भयो तर फरक एती छ आज आकाश को पालो छ।" वाह नारन वाह !
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dipika02
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Posted on 07-23-08 9:35
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गाजलु आँखामा नशालु भाखा पग्लिन्छ ढुंगा पनि झुकी लुक्छ काँडा भित्र लजाइ फूल को थुँगा पनि
वाह! वाह! वाह! ठुल्दाइ हाम्रो भाउजु को यती मिठो बर्णन !!!! भाउजुलाई बधाई!!!
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सान्नानी
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Posted on 07-23-08 9:36
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ati sundar thuldai :) bhaujulai jharima bhijeko dekhera yasto lekheko ho?
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Nepal ko chora
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Posted on 07-23-08 9:45
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"बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी!!"
वाह वाह ठुल्दाइ, गजब को छ।
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Rahuldai
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Posted on 07-23-08 11:55
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बिर्खे जी ,
रोमान्टिक हुन, रोमान्टिक फुर्न नि समय र साइत हुन्छ र बिर्खे बा। जवानी त अझै गाछैन नि। चिलिम ब्रेक मै फुरेको हो यो पनि।
रिट्ठेजी, किचकन्ने को बर्णन यस्तो हुन्छ र भन्या। एक दिन किचकन्ने भेट्छु र अर्को गीत गजल लेख्छु।
दीपिका जी,
भाउजु कै बर्णन हो जस्तो लाग्दैन। भाउजुको पाउजु पनि यो भन्दा सुन्दर छ।
सान्नानी जी ,
भाउजु झरी म नरुझिकनै परि जस्ती देखीन्छे।
नेप्चे जी , वाह ! वाह ! कबिता लाई कि ठुलदाई लाई ?
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बिस्टे
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Posted on 07-23-08 11:59
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वाह वाह ठुल्दाइ गज्जप को छ बूंद बूंद भै झरुं कि आफै, स्पर्श पाउन घरी घरी मलाई पनि त्यसरी नै झर्न मन लाग्यो
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Gyani_keta
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Posted on 07-23-08 12:21
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awesome poem.....haven't read such a nice piece in a long time....good work
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Rahuldai
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Posted on 07-23-08 1:35
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बिस्टेजी , मन पानी पानी भएछ जस्तो छ, झर्न मन लाग्यो रे।झरम झरम हो, त्यसको आनन्द बेग्लै हुन्छ।
ज्ञानी केटा जी, मन पराइ दिनु भएकोमा आभारी छु।
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तिका:
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Posted on 07-23-08 2:15
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तिका: जी,
संभवत राजनैतीक मजाक गर्ने धागो यो होइन जस्तो लाग्यो।
मालुम है मालुम है
तपाईं को अनुवाद भने प्रसंसानीय नै छ।
धनवाद धनवाद
लेकिन, हमने राजनैतीक मजाक नहि किया है, वास्तविकता बताया है । खेँ खेँ खेँ खेँ
हम ने ये खेँ खेँ खेँ खेँ कर्ना तो वहि चोतारी से सीखा है, लगता है फिर इकबार सबको गाली देनेको लिए चोतारी मे जाउँ - खेँ खेँ खेँ खेँ , नीद हराम किया था ना हम ने ? याद आया ?
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OcRam
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Posted on 07-23-08 4:42
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धेरै राम्रो भक्तहरुको उपासना हो या प्रक्रितीको सुन्दर सिर्जना
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syanjali
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Posted on 07-23-08 5:39
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Translation was as good as the original, though the last line made it "majaa ko kir kira".
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